US Tariff on India: US संसद में भारत पर टैरिफ खत्म करने के लिए प्रस्ताव पेश। फंस गए Donald Trump


1. प्रस्ताव का परिचय

अमेरिकी संसद में भारत पर लगाए गए आयात शुल्क (टैरिफ) को समाप्त करने के लिए एक नया प्रस्ताव पेश किया गया है, जिसने वाशिंगटन की राजनीति में हलचल मचा दी है। यह प्रस्ताव ऐसे समय में सामने आया है जब अमेरिका–भारत व्यापार संबंध लगातार मजबूत हो रहे हैं और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत को एक अहम रणनीतिक साझेदार माना जा रहा है। इस कदम से न केवल व्यापार नीति पर बहस तेज हुई है, बल्कि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ-केंद्रित नीति पर भी सवाल खड़े हो गए हैं।

अमेरिकी संसद में पेश किए गए प्रस्ताव की जानकारी

  • प्रस्ताव का उद्देश्य भारत से आयात होने वाले चुनिंदा उत्पादों पर लगाए गए अतिरिक्त अमेरिकी टैरिफ को खत्म करना है।

  • इसे द्विदलीय समर्थन (Democrats और Republicans दोनों) के साथ पेश किया गया है।

  • प्रस्ताव में कहा गया है कि भारत पर टैरिफ जारी रखना अमेरिका के आर्थिक और रणनीतिक हितों के खिलाफ है।

  • अमेरिकी उद्योगों, खासकर टेक्नोलॉजी, फार्मा और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर, को इससे नुकसान होने का हवाला दिया गया है।

प्रस्ताव लाने का राजनीतिक और आर्थिक संदर्भ

  • राजनीतिक संदर्भ:

    • अमेरिका में चुनावी माहौल और ट्रंप की “America First” टैरिफ नीति पर बढ़ता दबाव।

    • भारत को चीन के विकल्प और रणनीतिक सहयोगी के रूप में मजबूत करने की जरूरत।

  • आर्थिक संदर्भ:

    • टैरिफ के कारण अमेरिकी कंपनियों की लागत बढ़ी और उपभोक्ताओं पर महंगाई का बोझ पड़ा।

    • भारत के साथ व्यापार आसान होने से सप्लाई चेन मजबूत करने की अमेरिकी कोशिश।

भारत पर US टैरिफ का पूरा बैकग्राउंड

अमेरिका ने भारत पर टैरिफ मुख्य रूप से डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान लगाए थे, जब “America First” नीति के तहत आयात पर सख्ती की गई थी। इस नीति का उद्देश्य अमेरिकी उद्योगों की रक्षा करना और व्यापार घाटे को कम करना था। हालांकि, इन टैरिफ का असर सिर्फ भारत पर ही नहीं पड़ा, बल्कि अमेरिकी कंपनियों और उपभोक्ताओं को भी इसकी कीमत चुकानी पड़ी।

भारत पर लगाए गए टैरिफ की मुख्य बातें

  • अमेरिका ने भारत से आयात होने वाले स्टील, एल्युमिनियम, ऑटो पार्ट्स और कुछ कृषि उत्पादों पर अतिरिक्त टैरिफ लगाया।

  • भारत को GSP (Generalized System of Preferences) का लाभ 2019 में वापस ले लिया गया।

  • टैरिफ का मकसद अमेरिकी घरेलू उद्योगों को प्रतिस्पर्धा से बचाना बताया गया।

ट्रंप प्रशासन की टैरिफ नीति का उद्देश्य

  • अमेरिकी मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देना।

  • भारत सहित कई देशों के साथ व्यापार घाटे को कम करना।

  • आयात पर दबाव बनाकर व्यापार समझौतों में बेहतर शर्तें हासिल करना।

टैरिफ का वास्तविक असर

  • भारतीय निर्यातकों को अमेरिकी बाजार में नुकसान हुआ।

  • अमेरिकी कंपनियों की उत्पादन लागत बढ़ी।

  • उपभोक्ताओं को महंगे उत्पाद खरीदने पड़े।

US संसद में विरोध क्यों तेज हुआ

भारत पर लगाए गए अमेरिकी टैरिफ को लेकर अब US संसद में असंतोष खुलकर सामने आने लगा है। कई सांसदों का मानना है कि यह नीति अपने लक्ष्य हासिल करने में असफल रही है और उल्टा अमेरिका के आर्थिक हितों को नुकसान पहुँचा रही है। भारत को एक भरोसेमंद रणनीतिक साझेदार मानते हुए सांसद टैरिफ खत्म करने की मांग कर रहे हैं।

अमेरिकी उद्योगों पर नकारात्मक असर

  • टैरिफ के कारण कच्चे माल और आयातित कंपोनेंट्स की लागत बढ़ गई।

  • अमेरिकी मैन्युफैक्चरिंग और टेक कंपनियों की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता कमजोर हुई।

  • छोटे और मध्यम अमेरिकी कारोबार सबसे ज्यादा प्रभावित हुए।

उपभोक्ताओं पर बढ़ा बोझ

  • टैरिफ की वजह से रोजमर्रा के उत्पाद महंगे हुए।

  • महंगाई के दबाव ने आम अमेरिकी उपभोक्ताओं में नाराजगी बढ़ाई।

भारत को रणनीतिक साझेदार मानने की सोच

  • भारत को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के मुकाबले एक अहम सहयोगी माना जा रहा है।

  • रक्षा, टेक्नोलॉजी और सप्लाई चेन में भारत के साथ सहयोग बढ़ाने की जरूरत।

  • सांसदों का तर्क है कि टैरिफ जारी रखने से भारत-अमेरिका संबंध कमजोर हो सकते हैं।

Donald Trump क्यों ‘फंसते’ नजर आ रहे हैं

अमेरिकी संसद में भारत पर टैरिफ खत्म करने के प्रस्ताव ने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को राजनीतिक रूप से असहज स्थिति में डाल दिया है। एक तरफ उनकी पहचान “America First” और सख्त टैरिफ नीति से जुड़ी रही है, वहीं दूसरी ओर अब उसी नीति के खिलाफ उनकी ही पार्टी के कई सांसद खुलकर सामने आ रहे हैं। इससे ट्रंप के लिए अपने पुराने रुख पर कायम रहना और राजनीतिक संतुलन बनाए रखना मुश्किल होता जा रहा है।

‘America First’ नीति बनाम संसदीय दबाव

  • ट्रंप की राजनीति की पहचान आयात पर सख्ती और टैरिफ को हथियार की तरह इस्तेमाल करने से रही है।

  • अब सांसदों का एक वर्ग मानता है कि यह नीति अमेरिका के दीर्घकालिक हितों के खिलाफ है।

  • पार्टी के भीतर बढ़ता विरोध ट्रंप की रणनीति को कमजोर करता दिख रहा है।

चुनावी राजनीति का असर

  • चुनावी माहौल में महंगाई और आर्थिक मुद्दे मतदाताओं के लिए अहम बन चुके हैं।

  • टैरिफ के कारण बढ़ी कीमतों का ठीकरा ट्रंप की नीतियों पर फूट सकता है।

  • टैरिफ हटाने का विरोध करने से ट्रंप को बिजनेस और मिडिल-क्लास वोटर्स नाराज़ हो सकते हैं।

बिजनेस लॉबी और उद्योग जगत का दबाव

  • बड़ी अमेरिकी कंपनियाँ भारत के साथ व्यापार आसान करने की मांग कर रही हैं।

  • टेक, फार्मा और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर टैरिफ को नुकसानदेह बता रहे हैं।

  • उद्योग जगत का समर्थन खोने का खतरा ट्रंप के लिए एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है।

भारत–अमेरिका संबंधों पर असर

अगर भारत पर लगाए गए अमेरिकी टैरिफ खत्म होते हैं, तो इसका सीधा और सकारात्मक असर भारत–अमेरिका द्विपक्षीय संबंधों पर पड़ेगा। दोनों देश पहले ही रणनीतिक, रक्षा और तकनीकी क्षेत्रों में एक-दूसरे के करीबी साझेदार बन चुके हैं। टैरिफ हटने से न केवल व्यापारिक तनाव कम होगा, बल्कि आपसी भरोसा और सहयोग भी मजबूत होगा।

व्यापारिक रिश्तों में संभावित सुधार

  • भारतीय निर्यातकों को अमेरिकी बाजार में बेहतर अवसर मिलेंगे।

  • दोनों देशों के बीच व्यापार घाटे को संतुलित करने की दिशा में सकारात्मक माहौल बनेगा।

  • द्विपक्षीय व्यापार समझौते (Trade Deal) की राह आसान हो सकती है।

रणनीतिक और रक्षा सहयोग पर प्रभाव

  • भारत को इंडो-पैसिफिक रणनीति में और मजबूत साझेदार के रूप में देखा जाएगा।

  • रक्षा सौदों, संयुक्त सैन्य अभ्यास और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर में तेजी आ सकती है।

  • चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने में भारत–अमेरिका साझेदारी और मजबूत होगी।

भारत के लिए आर्थिक और कूटनीतिक लाभ

  • IT, फार्मा, टेक्सटाइल और इंजीनियरिंग सेक्टर को सीधा फायदा।

  • विदेशी निवेशकों का भरोसा बढ़ेगा।

  • वैश्विक मंच पर भारत की आर्थिक और कूटनीतिक स्थिति और मजबूत होगी।

आगे क्या?

अमेरिकी संसद में भारत पर टैरिफ खत्म करने के लिए पेश किया गया प्रस्ताव अब नीति और राजनीति दोनों के स्तर पर अहम मोड़ पर है। आने वाले हफ्तों में यह साफ होगा कि अमेरिका अपनी पुरानी टैरिफ नीति पर कायम रहता है या बदलते वैश्विक और आर्थिक हालात को देखते हुए भारत के साथ व्यापार को नई दिशा देता है। इस फैसले का असर सिर्फ दो देशों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि वैश्विक व्यापार समीकरणों पर भी पड़ेगा।

टैरिफ हटने की संभावनाएँ

  • द्विदलीय समर्थन के कारण प्रस्ताव के पास होने की संभावना मजबूत मानी जा रही है।

  • अमेरिकी उद्योग और बिजनेस लॉबी लगातार टैरिफ खत्म करने का दबाव बना रहे हैं।

  • प्रशासन यदि महंगाई और सप्लाई चेन पर फोकस करता है, तो टैरिफ हटाना प्राथमिकता बन सकता है।

अगर प्रस्ताव पास होता है तो असर

  • भारत–अमेरिका व्यापार संबंधों में नई शुरुआत होगी।

  • भारतीय निर्यातकों और अमेरिकी कंपनियों दोनों को राहत मिलेगी।

  • वैश्विक बाजारों में सकारात्मक संकेत जाएगा।

अगर टैरिफ जारी रहते हैं तो क्या?

  • व्यापारिक तनाव बना रह सकता है।

  • भारत वैकल्पिक बाजारों और साझेदारों की ओर और तेजी से बढ़ सकता है।

  • अमेरिका को रणनीतिक स्तर पर भारत से दूरी का जोखिम उठाना पड़ सकता है।

निष्कर्ष

अमेरिकी संसद में भारत पर लगाए गए टैरिफ को खत्म करने के लिए पेश किया गया प्रस्ताव केवल एक व्यापारिक फैसला नहीं है, बल्कि यह अमेरिका की बदलती राजनीतिक सोच और वैश्विक रणनीति को भी दर्शाता है। ट्रंप दौर की सख्त टैरिफ नीति अब खुद अमेरिका के भीतर सवालों के घेरे में है, क्योंकि इससे अपेक्षित लाभ नहीं मिला और उल्टा उद्योगों व उपभोक्ताओं पर बोझ बढ़ा। संसद में बढ़ता विरोध यह संकेत देता है कि अमेरिका अब अपने फैसलों की आर्थिक और कूटनीतिक कीमत पर गंभीरता से विचार कर रहा है।

भारत–अमेरिका संबंधों के लिहाज से यह घटनाक्रम बेहद अहम है। टैरिफ हटने की स्थिति में दोनों देशों के बीच व्यापारिक तनाव कम होगा, आपसी भरोसा मजबूत होगा और रणनीतिक साझेदारी को नई गति मिलेगी। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की चुनौती के बीच भारत को एक मजबूत आर्थिक और रणनीतिक साझेदार के रूप में देखना अमेरिका के हित में भी है। कुल मिलाकर, यह फैसला द्विपक्षीय रिश्तों को और गहराई देने वाला साबित हो सकता है और भारत–अमेरिका सहयोग के नए अध्याय की शुरुआत कर सकता है।



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