भोजपुरी भाषा ही नहीं, एक जातीय संस्कृति की पहचान', संकल्प के साथ भोजपुरी साहित्य सम्मेलन का समापन



1. भूमिका 

भोजपुरी साहित्य सम्मेलन का समापन एक सशक्त संदेश के साथ हुआ, जिसमें यह स्पष्ट रूप से रेखांकित किया गया कि भोजपुरी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि एक समृद्ध जातीय संस्कृति की पहचान है। सम्मेलन का पूरा माहौल उत्साह, गर्व और सांस्कृतिक चेतना से भरा हुआ था। साहित्यकारों, कलाकारों और प्रतिभागियों ने मिलकर यह संकल्प दोहराया कि भोजपुरी की गौरवशाली परंपरा, साहित्य और लोकसंस्कृति को नई पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए संगठित प्रयास आवश्यक हैं। समापन सत्र ने इस सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने की प्रतिबद्धता को और भी मजबूत किया।

सम्मेलन के समापन का संक्षिप्त उल्लेख

  • अंतिम सत्र की गरिमा: समापन सत्र में प्रमुख साहित्यकारों, भाषाविदों और विशिष्ट अतिथियों की उपस्थिति से कार्यक्रम और भी गरिमामय बना।

  • मुख्य वक्तव्यों का सार: वक्ताओं ने सम्मेलन के तीन दिवसीय विमर्श का सार प्रस्तुत करते हुए भोजपुरी साहित्य की वर्तमान स्थिति और उसके भविष्य पर अपनी दृष्टि साझा की।

  • सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के साथ समापन: लोकगीत, कवि-गोष्ठी और सम्मान समारोह के बीच कार्यक्रम का समापन भावनात्मक और उत्साहपूर्ण वातावरण में हुआ।

भोजपुरी भाषा और संस्कृति के महत्व पर उद्घाटन 

  • समृद्ध विरासत का परिचय: वक्ताओं ने भोजपुरी की हजारों वर्षों पुरानी लोक परंपराओं, कहावतों, गीतों और कथाओं का उल्लेख कर इसकी सांस्कृतिक गहराई को रेखांकित किया।

  • जातीयता और सामाजिक पहचान: भोजपुरी को एक जातीय संस्कृति, सामुदायिक विरासत और विभिन्न क्षेत्रों की साझा पहचान के रूप में प्रस्तुत किया गया।

  • वैश्विक स्तर पर प्रसार: प्रवासी भारतीयों के माध्यम से भोजपुरी का अंतरराष्ट्रीय प्रभाव बढ़ने पर भी चर्चा की गई, जिससे इसकी वैश्विक पहचान मजबूत हुई है।

आयोजन का उद्देश्य और भावनात्मक माहौल

  • भाषा संरक्षण का लक्ष्य: सम्मेलन का प्रमुख उद्देश्य भोजपुरी भाषा को साहित्य, शिक्षा, मीडिया और सामाजिक जीवन में और अधिक प्रतिष्ठा दिलाना था।

  • नई पीढ़ी से जुड़ाव: युवाओं को भोजपुरी साहित्य और कला से जोड़ने तथा उन्हें अपनी मूल संस्कृति के प्रति जागरूक करने पर विशेष जोर दिया गया।

  • भावनात्मक और प्रेरक वातावरण: पूरे आयोजन में प्रतिभागियों के बीच अपनत्व, सांस्कृतिक गर्व और भाषा-प्रेम की भावना स्पष्ट रूप से दिखाई दी, जिसने माहौल को प्रेरक और उत्साहपूर्ण बना दिया।

2. सम्मेलन का पृष्ठभूमि विवरण

2.1 अनुच्छेद 

भोजपुरी साहित्य सम्मेलन का आयोजन क्षेत्रीय साहित्य, संस्कृति और भाषा के संरक्षण को समर्पित संस्थाओं और विद्वानों के संयुक्त प्रयास से किया गया था। सम्मेलन कई साहित्यिक सत्रों, चर्चाओं और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों से समृद्ध रहा, जिसने भोजपुरी की व्यापकता और विविधता को उजागर किया। तीन दिनों तक चले इस आयोजन में देश-विदेश के साहित्यकारों, कलाकारों और युवा प्रतिभाओं ने मिलकर भोजपुरी के विकास, साहित्यिक हस्तक्षेपों और सांस्कृतिक पुनर्जीवन पर गहन विमर्श किया। आयोजन स्थल पूरे समय सांस्कृतिक रंगों, लोककला और साहित्यिक उमंग से भरा रहा।

2.2 सम्मेलन का स्थान, तिथि और आयोजक संस्था

  • स्थान और तिथि: सम्मेलन का आयोजन एक सांस्कृतिक रूप से समृद्ध स्थल पर हुआ, जहाँ तीन दिनों तक साहित्यिक गतिविधियों का सिलसिला चलता रहा।

  • आयोजक संस्था: यह सम्मेलन भोजपुरी भाषा और संस्कृति को समर्पित प्रमुख साहित्यिक संस्थाओं द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था।

  • प्रतिभागियों की संख्या: देश-विदेश से आए सैकड़ों साहित्यकारों, शोधकर्ताओं, कलाकारों और छात्रों ने इसमें सक्रिय भागीदारी की।

  • प्रवासी भोजपुरी समाज की सहभागिता: विदेशों में बसे भोजपुरी समुदाय के प्रतिनिधियों ने भी ऑनलाइन और प्रत्यक्ष रूप से कार्यक्रम में शामिल होकर इसे अंतरराष्ट्रीय स्वरूप दिया।

2.3 प्रमुख अतिथि, विद्वान और साहित्यकारों की भागीदारी

  • मुख्य अतिथियों की उपस्थिति: ख्यातिप्राप्त साहित्यकारों, भाषाविदों, शिक्षाविदों और सांस्कृतिक दूतों ने सम्मेलन की शोभा बढ़ाई।

  • वैचारिक मार्गदर्शन: भाषा के भविष्य, साहित्यिक चुनौतियों और सांस्कृतिक जिम्मेदारियों पर विशेषज्ञों ने गंभीर विमर्श प्रस्तुत किया।

  • प्रतिभावान युवाओं की मौजूदगी: युवा लेखक, कवि और कलाकारों ने नई ऊर्जा और नए दृष्टिकोण के साथ सम्मेलन को और भी जीवंत बनाया।

  • लोक कलाकारों का योगदान: भोजपुरी लोकगीत, बिरहा, कजरी, चइता और अन्य लोक-पारंपरिक गायनों की प्रस्तुति ने सांस्कृतिक सौंदर्य बढ़ा दिया।

2.4 कार्यक्रम की मुख्य थीम और विचारधारा

  • भोजपुरी की पहचान और भविष्य: सम्मेलन का प्रमुख विषय था — “भोजपुरी केवल भाषा नहीं, बल्कि एक जातीय अस्तित्व और सांस्कृतिक परंपरा की पहचान।”

  • साहित्य और समाज का संबंध: चर्चा में यह बात उभरकर आई कि भोजपुरी साहित्य सामाजिक जीवन की वास्तविकताओं और भावनाओं का प्रामाणिक दर्पण है।

  • भाषाई चुनौतियों पर विमर्श: उपेक्षा, सीमित संसाधनों, और युवा पीढ़ी में घटती भाषा-प्रवृत्ति जैसे मुद्दों पर गंभीर बहस हुई।

  • सांस्कृतिक पुनर्जागरण: सम्मेलन का केंद्र-संदेश था कि भाषा को जीवंत बनाए रखने के लिए सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

3. “भाषा नहीं, जातीय संस्कृति की पहचान” — मुख्य संदेश

3.1 अनुच्छेद 

सम्मेलन का सबसे सशक्त और प्रभावशाली संदेश यह रहा कि भोजपुरी केवल बोलचाल की भाषा नहीं, बल्कि एक गहरी जातीय और सांस्कृतिक पहचान का आधार है। वक्ताओं ने जोर देकर कहा कि भोजपुरी में निहित लोकसंस्कृति, परंपराएँ, गीत-संगीत, कथाएँ और जीवन-मूल्य इसे महज़ भाषा से कहीं आगे ले जाते हैं। यह पहचान सिर्फ भोजपुरी भाषियों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे भारतीय सांस्कृतिक परिदृश्य के लिए गौरव का विषय है। सम्मेलन ने इस बात पर व्यापक सहमति जताई कि भोजपुरी संस्कृति को संरक्षित करना, उसे सम्मान देना और नई पीढ़ी को उससे जोड़ना समय की आवश्यकता है।

3.2 भोजपुरी की सांस्कृतिक पहचान पर जोर 

  • लोकजीवन की अभिव्यक्ति: वक्ताओं ने बताया कि भोजपुरी भाषा में लोकगीत, कहावतें, सूक्तियाँ और रीति-रिवाज़ जीवन के हर पहलू की सजीव अभिव्यक्ति हैं।

  • जातीय परंपराओं का संवाहक: विवाह, पर्व-त्योहार, कृषि, मौसम और जीवन-मूल्यों से जुड़े भोजपुरी के लोक रिवाज़ इसे सांस्कृतिक विरासत का मजबूत स्तंभ बनाते हैं।

  • सामूहिक पहचान का प्रतीक: भोजपुरी को केवल क्षेत्रीय भाषा नहीं, बल्कि एक व्यापक समुदाय, विशेष जीवनदृष्टि और सामाजिक मूल्यों का प्रतीक माना गया।

3.3 भाषा के साथ जुड़ी परंपराएँ और लोक कला 

  • लोकगीत और नृत्य: कजरी, चैता, बिरहा, सोहर, जोगीरा और फगुआ जैसे पारंपरिक गीत-कला रूप भोजपुरी संस्कृति की आत्मा के रूप में प्रस्तुत हुए।

  • लोककथाएँ और किस्से: पारंपरिक कथाएँ, कथावाचन, लोकनाट्य और नाच-नटवा की परंपरा को संस्कृति के जीवंत स्वरूप के रूप में रेखांकित किया गया।

  • हस्तकला और लोकशिल्प: मिट्टी, कपड़े, बाँस और लकड़ी की पारंपरिक कलाएँ भी भोजपुरी सांस्कृतिक पहचान का आधार मानी गईं।

3.4 भोजपुरी को केवल बोलचाल तक सीमित न मानने पर बल

  • साहित्यिक विस्तार: वक्ताओं ने कहा कि भोजपुरी में कविता, उपन्यास, यात्रा-वृत्तांत, आलोचना और लोकसाहित्य का बड़ा और मूल्यवान भंडार मौजूद है।

  • शिक्षा और शोध की आवश्यकता: विश्वविद्यालयों में भोजपुरी विभाग, शोध, डॉक्टरेट अध्ययन और अकादमिक पाठ्यक्रमों को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया।

  • डिजिटल युग में विस्तार: सोशल मीडिया, वेब-सीरीज़, संगीत और फ़िल्मों के माध्यम से नई पीढ़ी तक भाषा को आधुनिक रूप में पहुँचाने की आवश्यकता व्यक्त की गई।

3.5 सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने का आह्वान 

  • सांस्कृतिक दस्तावेज़ीकरण: लोक-संस्कृति, गीत, रीति-रिवाज़ और लोककथाओं का व्यवस्थित दस्तावेज़ीकरण करने की मांग उठी।

  • सरकारी मान्यता और सहयोग: भोजपुरी को शिक्षा और प्रशासन में अधिक स्थान देने तथा इसे आधिकारिक मान्यता दिलाने के लिए प्रयास तेज़ करने का आह्वान किया गया।

  • सामूहिक जिम्मेदारी: वक्ताओं ने कहा कि भाषा और संस्कृति को बचाने की जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं, बल्कि पूरे समाज की है।

4. सम्मेलन में हुई विशेष चर्चाएँ

4.1 अनुच्छेद

सम्मेलन के दौरान कई महत्वपूर्ण विषयों पर विस्तृत और प्रभावी चर्चाएँ हुईं, जिनमें भोजपुरी भाषा के संवर्धन से लेकर सांस्कृतिक पुनरुत्थान तक अनेक पहलुओं को शामिल किया गया। विद्वानों ने न केवल वर्तमान चुनौतियों का विश्लेषण किया बल्कि समाधान और भविष्य की दिशा भी सुझाई। चर्चाएँ साहित्यिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और तकनीकी क्षेत्रों तक फैली हुई थीं, जिसने सम्मेलन को व्यापक और बहुआयामी स्वरूप दिया। प्रतिभागियों ने इस बात पर जोर दिया कि भाषा की प्रगति तभी संभव है जब साहित्य, शिक्षा, मीडिया और समाज सभी स्तरों पर एकसाथ प्रयास हों।

4.2 साहित्यिक सत्रों में प्रमुख मुद्दों पर चर्चा 

  • भोजपुरी साहित्य का विकास: समकालीन साहित्य, भाषा शैली और नई रचनात्मक प्रवृत्तियों पर विस्तृत विमर्श हुआ।

  • लोकसाहित्य का पुनर्पाठ: विद्वानों ने लोकगीतों, कथाओं और परंपरागत साहित्य को नए दृष्टिकोण से समझने पर जोर दिया।

  • रचनाकारों की भूमिका: लेखकों को भाषा की मर्यादा और विशिष्टता बनाए रखते हुए आधुनिक विषयों पर लेखन के लिए प्रोत्साहित किया गया।

  • पुरस्कार और सम्मान: उल्लेखनीय साहित्यिक योगदान करने वाले रचनाकारों का सम्मान भी सम्मेलन का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा।

4.3 भाषा संरक्षण और संवर्धन पर विमर्श 

  • भाषा संरक्षण की रणनीति: शिक्षा, मीडिया और सामाजिक स्तर पर भोजपुरी के प्रसार के लिए नीतिगत सुझाव दिए गए।

  • यूनेस्को की भाषा श्रेणी: भोजपुरी को संकटग्रस्त भाषाओं की सूची से बाहर लाने के लिए अनुसंधान और दस्तावेज़ीकरण की आवश्यकता पर जोर दिया गया।

  • पारिवारिक भूमिका: परिवार और समुदाय को बच्चों में भाषा-प्रेम जगाने की मुख्य कड़ी के रूप में रेखांकित किया गया।

  • शहरीकरण और भाषा: बढ़ते शहरी परिवेश में भाषा उपयोग में कमी पर चर्चा करते हुए व्यवहारिक समाधान सुझाए गए।

4.4 प्रवासी भोजपुरी समाज की भूमिका पर चर्चा 

  • अंतरराष्ट्रीय पहचान: मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम, नीदरलैंड, नेपाल और कैरिबियाई देशों में बसे प्रवासी भोजपुरी समाज की गतिविधियों का उल्लेख किया गया।

  • भाषाई कार्यक्रम: विदेशों में भोजपुरी गीत, नृत्य और साहित्यिक आयोजनों के माध्यम से भाषा को जीवंत बनाए रखने के प्रयासों की सराहना की गई।

  • पीढ़ियों का अंतर: नई पीढ़ी में भाषा की पकड़ कमजोर होने की समस्या पर चिंता जताते हुए समाधान सुझाए गए।

  • डिजिटल कनेक्टिविटी: ऑनलाइन साहित्यिक मंच और वर्चुअल कार्यक्रमों से वैश्विक जुड़ाव बढ़ाने पर बल दिया गया।

4.5 शिक्षा, साहित्य और मीडिया में भोजपुरी के विस्तार पर चर्चा 

  • विद्यालय और विश्वविद्यालय स्तर पर मांग: विद्यालय पाठ्यक्रम में भोजपुरी भाषा को शामिल करने और विश्वविद्यालयों में पीएचडी स्तर तक अध्ययन सुविधाएँ बढ़ाने की मांग उठी।

  • साहित्यिक अनुवाद: अन्य भारतीय भाषाओं और अंग्रेज़ी में भोजपुरी साहित्य के अनुवाद को बढ़ावा देने पर सहमति बनी।

  • फिल्म और संगीत उद्योग: भोजपुरी फिल्मों की गुणवत्ता, विषय-वस्तु और भाषा-शैली पर गहन बहस हुई, साथ ही सकारात्मक बदलाव की जरूरत पर जोर दिया गया।

  • डिजिटल मीडिया: यूट्यूब, पॉडकास्ट और सोशल मीडिया के माध्यम से भाषा विस्तार के आधुनिक अवसरों पर चर्चा की गई।

5. सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ और कार्यक्रम की मुख्य झलकियाँ

5.1 अनुच्छेद 

सम्मेलन का सांस्कृतिक हिस्सा उतना ही प्रभावशाली और आकर्षक रहा जितना इसका साहित्यिक पक्ष। तीन दिनों तक विभिन्न लोककलाओं, संगीत-नृत्य प्रस्तुतियों और पारंपरिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने भोजपुरी की आत्मा को सजीव कर दिया। कलाकारों ने अपनी प्रस्तुतियों के माध्यम से यह दिखाया कि भोजपुरी संस्कृति कितनी समृद्ध, बहुरंगी और जीवन से भरपूर है। दर्शकों ने उत्साह, भावनाओं और स्वाभाविक उमंग के बीच इन कार्यक्रमों का आनंद लिया, जिससे सम्मेलन एक सांस्कृतिक उत्सव का रूप लेता दिखाई दिया।

5.2 लोकगीत, नृत्य और पारंपरिक प्रस्तुतियों की झलक 

  • लोकगीतों की प्रस्तुति: सोहर, बिरहा, कजरी, चैता, और फगुआ जैसे गीतों ने मंच को लोकसंगीत की जीवंत धुनों से भर दिया।

  • पारंपरिक नृत्य: लोकनृत्य, नाच-नटवा की परंपरा और पारंपरिक वाद्ययंत्रों की धुनों ने दर्शकों को क्षेत्रीय संस्कृति से जोड़ दिया।

  • लोक वाद्यों का इस्तेमाल: ढोलक, मांदर, सारंगी और बांसुरी जैसे वाद्ययंत्रों की ध्वनि ने प्रस्तुतियों में प्रामाणिकता का रंग भरा।

  • महिलाओं की सहभागिता: महिला कलाकारों ने पारंपरिक गीतों और नृत्यों के माध्यम से सांस्कृतिक सौंदर्य और भावनात्मक गहराई को उजागर किया।

5.3 साहित्यिक पाठ और कवि सम्मेलन की झलकियाँ 

  • कविता पाठ: सुप्रसिद्ध कवियों और युवा रचनाकारों ने अपनी कविताओं से भाषा की भावनात्मक, व्यंग्यात्मक और सामाजिक संवेदनाओं को प्रस्तुत किया।

  • कहानी और नाट्य-पाठ: भोजपुरी जीवन और संस्कृति पर आधारित लघु नाट्य प्रस्तुतियों ने दर्शकों को गहरे तक प्रभावित किया।

  • नई पीढ़ी की भागीदारी: युवा कवियों और लेखकों की प्रस्तुतियों ने साहित्य में नई ऊर्जा और आधुनिक दृष्टिकोण की बयार लाई।

  • महिला रचनाकारों की आवाज: भोजपुरी साहित्य में महिलाओं की सशक्त उपस्थिति को प्रदर्शित करने वाली विशिष्ट प्रस्तुतियाँ हुईं।

5.4 पारंपरिक वेशभूषा, कला और लोकशिल्प की प्रदर्शनी 

  • वेशभूषा प्रदर्शन: धोती-कुर्ता, लहँगा-चोली, पईसन और पारंपरिक गहनों की प्रदर्शनी ने सांस्कृतिक विविधता को जीवंत किया।

  • लोकशिल्प: मिट्टी, बांस, लकड़ी और कपड़े पर आधारित पारंपरिक हस्तशिल्प का सुंदर प्रदर्शन किया गया।

  • चित्रकला: मिथिला और लोकचित्र पर आधारित कला प्रदर्शनी ने आगंतुकों को आकर्षित किया।

  • स्थानीय कलाकारों का प्रोत्साहन: सम्मेलन ने स्थानीय कारीगरों और कलाकारों को अपने कार्यों को प्रदर्शित करने का अवसर दिया।

5.5 प्रवासी भोजपुरी समाज की विशेष प्रस्तुतियाँ

  • अंतरराष्ट्रीय प्रस्तुतियाँ: मॉरीशस, फिजी, त्रिनिदाद और नीदरलैंड से जुड़े कलाकारों ने भोजपुरी गीत और नृत्य की वैश्विक पहचान को मंच पर लाया।

  • संस्कृति का वैश्विक संदेश: प्रस्तुति ने दिखाया कि प्रवासी समाज किस तरह भाषा और संस्कृति को पीढ़ियों तक जीवित रखे हुए है।

  • वीडियो और वर्चुअल परफॉर्मेंस: कुछ प्रस्तुतियाँ ऑनलाइन जुड़कर की गईं, जिससे सम्मेलन का अंतरराष्ट्रीय स्वरूप और मजबूत हुआ।

6. सम्मेलन के दौरान उठाए गए प्रमुख संकल्प और प्रस्ताव

6.1 अनुच्छेद 

सम्मेलन के अंतिम सत्र में भोजपुरी भाषा और संस्कृति के संरक्षण, प्रसार और सम्मान को लेकर कई महत्वपूर्ण संकल्प सर्वसम्मति से पारित किए गए। इन संकल्पों का उद्देश्य भाषा को नई पीढ़ी तक पहुँचाना, सांस्कृतिक जड़ों को मजबूत करना और राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भोजपुरी की पहचान को और व्यापक बनाना था। विभिन्न साहित्यकारों, संस्थानों और प्रतिनिधियों ने इन प्रस्तावों को भविष्य की कार्ययोजना मानते हुए ठोस कदम उठाने का विश्वास जताया। इन संकल्पों ने सम्मेलन को केवल एक सांस्कृतिक उत्सव नहीं, बल्कि एक दूरदृष्टि-आधारित सांस्कृतिक आंदोलन के रूप में स्थापित किया।

6.2 भोजपुरी भाषा को अधिक मान्यता दिलाने के प्रस्ताव

  • संवैधानिक मान्यता की मांग: भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पुनः जोरदार रूप से उठाया गया।

  • राज्य स्तर पर प्रोत्साहन: बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और अन्य राज्यों में भोजपुरी को प्रशासनिक और शैक्षणिक स्तर पर लागू करने की मांग।

  • सरकारी योजनाओं में भाषा का उपयोग: स्थानीय योजनाओं, सूचनाओं और सरकारी संचार में भोजपुरी के इस्तेमाल की दिशा में पहल का सुझाव।

6.3 साहित्यिक सृजन को बढ़ावा देने के लिए संकल्प 

  • रचनाकारों को सहयोग: युवा लेखकों और शोधकर्ताओं के लिए फेलोशिप, पुरस्कार और लेखन कार्यशालाएँ आयोजित करने का संकल्प।

  • पुस्तकालय और अभिलेखागार: प्रमुख शहरों में भोजपुरी साहित्य केंद्र और डिजिटल अभिलेख बनाने का प्रस्ताव।

  • अनुवाद कार्य: भोजपुरी रचनाओं का अन्य भाषाओं में और दूसरे क्षेत्रों के साहित्य का भोजपुरी में अनुवाद बढ़ाने पर बल।

6.4 शिक्षा और शोध के विस्तार से जुड़े प्रस्ताव

  • शैक्षणिक संस्थानों में विभाग: विश्वविद्यालयों में भोजपुरी विभागों की संख्या बढ़ाने और PG/PhD स्तर तक पाठ्यक्रम शुरू करने पर जोर।

  • स्कूल-कॉलेज स्तर पर अध्ययन: स्कूलों में भोजपुरी वैकल्पिक विषय के रूप में उपलब्ध कराने के सुझाव।

  • शोध परियोजनाएँ: भाषा, लोककला और सांस्कृतिक परंपराओं पर आधारित शोध कार्यों को वित्तीय और संस्थागत सहयोग देने की योजना।

6.5 डिजिटल और वैश्विक मंचों पर विस्तार के संकल्प 

  • डिजिटल आर्काइव: गीत, कहावतें, लोककथाएँ और साहित्यिक सामग्री का ऑनलाइन डेटाबेस विकसित करने का निर्णय।

  • भोजपुरी मीडिया को सशक्त बनाना: ई-पत्रिकाएँ, पॉडकास्ट, वेब सीरीज़ और डॉक्यूमेंट्री के माध्यम से युवाओं तक भाषा को पहुँचाने का संकल्प।

  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: प्रवासी समाज के साथ संयुक्त सांस्कृतिक और साहित्यिक परियोजनाओं को आगे बढ़ाने पर सहमति।

7. समापन समारोह और प्रमुख वक्तव्य

7.1 अनुच्छेद 

भोजपुरी साहित्य सम्मेलन का समापन समारोह उत्साह और भावनाओं के मिश्रण के साथ संपन्न हुआ। समारोह में प्रमुख साहित्यकारों, विद्वानों और प्रतिनिधियों ने अपने अनुभव साझा किए और भविष्य की दिशा पर जोर दिया। सभी ने यह स्पष्ट किया कि भोजपुरी केवल भाषा नहीं, बल्कि एक समृद्ध जातीय और सांस्कृतिक पहचान है। समापन समारोह ने इस तथ्य को पुष्ट किया कि भाषा, साहित्य और संस्कृति को संरक्षित करने के लिए सामूहिक प्रयास आवश्यक हैं।

7.2 प्रमुख वक्ताओं के संदेश 

  • साहित्यकारों का संदेश: वरिष्ठ साहित्यकारों ने कहा कि भोजपुरी भाषा और साहित्य को आधुनिक युग में पहचान दिलाने के लिए लगातार लेखन, शोध और शिक्षण आवश्यक है।

  • भाषाविदों का दृष्टिकोण: भाषा के व्याकरण, शब्दावली और लोककला पर विशेष ध्यान देने और दस्तावेज़ीकरण करने की आवश्यकता पर जोर।

  • युवा प्रतिनिधियों का योगदान: नई पीढ़ी ने अपनी प्रतिबद्धता जताई कि वे भोजपुरी को अपने दैनिक जीवन और रचनात्मक कार्यों में बनाए रखेंगे।

  • सरकारी और सामाजिक समर्थन की अपील: सभी वक्ताओं ने प्रशासनिक और सामाजिक स्तर पर सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया।

7.3 सांस्कृतिक और भावनात्मक महत्व

  • सांस्कृतिक गर्व का अनुभव: प्रतिभागियों ने लोकगीत, नृत्य और कविता प्रस्तुतियों के माध्यम से अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रहने का गर्व व्यक्त किया।

  • सामूहिक संकल्प: समापन सत्र में भाषा और संस्कृति के संरक्षण और प्रसार का सामूहिक संकल्प दोहराया गया।

  • भावनात्मक जुड़ाव: प्रवासी और स्थानीय प्रतिभागियों के साथ-साथ दर्शकों में भी भाषा और संस्कृति के प्रति गहरा भावनात्मक जुड़ाव देखा गया।

  • सांस्कृतिक उत्सव का रूप: साहित्य, कला और संगीत के मिलन ने सम्मेलन को केवल एक बौद्धिक आयोजन नहीं, बल्कि जीवंत सांस्कृतिक उत्सव का रूप दिया।

8. निष्कर्ष

भोजपुरी साहित्य सम्मेलन का समापन एक ऐतिहासिक संदेश के साथ हुआ कि भोजपुरी केवल भाषा नहीं, बल्कि एक समृद्ध जातीय और सांस्कृतिक पहचान है। तीन दिनों तक चले कार्यक्रमों, साहित्यिक चर्चाओं और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने यह स्पष्ट किया कि भाषा और संस्कृति के संरक्षण के लिए सामूहिक प्रयास, युवा सहभागिता और आधुनिक तकनीकी माध्यमों का उपयोग आवश्यक है। सम्मेलन ने यह भी संकेत दिया कि भोजपुरिया समाज अपनी सांस्कृतिक विरासत को नई पीढ़ी तक पहुँचाने और वैश्विक स्तर पर इसकी पहचान स्थापित करने के लिए दृढ़ संकल्पित है।


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